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दुनिया में ताकत के क्षेत्र में
रूस को अमेरिका के समक्ष माना जाता है। लेकिन इन दोनों महाशक्तियों में जबरदस्त दुश्मनी
है। यही वजह है कि रूस ने अमेरिका के दुश्मन चीन को अपना दोस्त बना रखा है। मुस्लिम
देशों पर अब अमेरिका कोई कार्यवाही करता है तो रूस ढाल बनकर खड़ा हो जाता है। महाशक्तियों
की जंग के बीच 9 जुलाई को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस पहुंच कर राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। रूस पहुंच कर मोदी ने पुतिन के सामने जो दिलेरी और
कूटनीति दिखाई, उसे भारत के मतदाता खासकर मुसलमानों को समझने की जरूरत हे। ऐसा नहीं
कि रूस के साथ दोस्ती भारत की मजबूरी है। मोदी ने रूस में दिलेरी दिखा कर अमेरिका जौर
चीन को बहुत कुछ समझाने की कोशिश की है। यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के संदर्भ में
मोदी ने मास्को में कहा कि युद्ध के मैदान से समस्या का हल नहीं हो सकता। समस्या के
हल के लिए शांति वार्ता जरूरी है। नरेंद्र मोदी संभवत: दुनिया के पहले नेता होंगे जिन्होंने
रूस में रहकर शांति वार्ता की बात कही। इससे पहले यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर राष्ट्रपति
पुतिन शांति वार्ता की बात सुनने को तैयार नहीं थे। मोदी की दो टूक कूटनीति के बाद
भी पुतिन ने रूस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल से सम्मानित
किया। पुतिन की यह सकारात्मक पहल दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर नरेंद्र मोदी
का कितना सम्मान और महत्व है। मोदी को भी पता है कि यह सम्मान भारत के 140 करोड़ लोगों
के कारण है। इस एहसास के कारण ही मोदी ने मास्को में भारतीय मूल के नागरिकों के समक्ष
कहा कि मैं 140 करोड़ लोगों का प्यार और हिंदुस्तान की मिट्टी की महक लेकर आया हंू।
यानी रूस में रहते हुए भी मोदी को अपने देश के लोगों के महत्व का पता था। अंतरराष्ट्रीय
मंच पर यदि मोदी पिछले दस वर्षों में कूटनीति नहीं अपनाते तो रूस में भारत को इतना
सम्मान नहीं मिलता। मोदी की रूस यात्रा का उद्देश्य कारोबार को बढ़ाना भी रहा। लेकिन
असल उद्देश्य अमेरिका और चीन को सबक सिखाना भी रहा। रूस में मोदी को जो महत्व मिला
उससे चीन को ऐतराज हो सकता है, क्योंकि भारत के प्रति चीन का रवैया दुश्मन जैसा है,
लेकिन रूस को इस बात का पता है कि पाकिस्तान में जो आतंकवाद पनप रहा है, उस पर नियंत्रण
भारत ही कर सकता है। यही वजह रही कि मोदी और पुतिन की मुलाकात में अनेक रक्षा सौदों
पर भी हस्ताक्षर हुए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि रूस से प्राप्त तकनीक के कारण भारत
रक्षा क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भर हो रहा है। भारत को उस रूस में सम्मान मिला है
जो रूस मुस्लिम देशों का मददगार है। इस बात को भारत के मुसलमानों को भी समझना चाहिए।
यदि रूस की मदद न हो तो अमेरिका कई मुस्लिम देशों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। मोदी
की कूटनीति की वजह से ही दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देशों से भारत के संबंध बहुत अच्छे
हैं। यही वजह रही कि 2019 में जब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया तो पाकिस्तान
को मुस्लिम देशों का समर्थन नहीं मिला। भारत के मतदाताओं को यह समझना चाहिए कि मोदी
के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत का महत्व बहुत बढ़ा है और अब भारत दुनिया में आर्थिक
क्षेत्र में तीसरी महाशक्ति बनने जा रहा है।
रिपोर्टर