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मुंबई। जीवनावश्यक वस्तुओं से लेकर सोने, चांदी और जरूरत की सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। रोजमर्रा के जीवन में आवश्यक साग-सब्जी, फल आदि की कीमतें भी सर्वसामान्य व्यक्ति की पहुंच से बाहर हो गई हैं। टमाटर ने तो कहर ही ढा दिया है। खुदरा बाजार में टमाटर के दाम प्रति किलो १२० से १५० रुपए तक बढ़ गए हैं। अनेक जीवनावश्यक वस्तुओं के उपयोग पर पहले ही महंगाई की वजह से बंदिशें लग चुकी हैं। उसमें अब टमाटर भी शामिल हो गया है। मानसून आने में हुई देर, उससे पहले बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का प्रहार और उससे हुए कृषि उपज के नुकसान को दर वृद्धि का जिम्मेदार सरकार की ओर से बताया जा रहा है। उसमें कुछ तथ्य हो भी सकते हैं, परंतु सभी कुछ प्रकृति के ‘भरोसे’ छोड़ना ही हो तो सरकार के नाते सत्ता में बैठे लोगों की जिम्मेदारी और कर्तव्य क्या हैं? पेट्रोल की दर वृद्धि पर ये कच्चे तेल की वैश्विक दर वृद्धि की ओर उंगली दिखाते हैं। फिर जब ये वैश्विक दरें कम होती हैं, तब पेट्रोल-डीजल उस प्रमाण में सस्ते क्यों नहीं होते? इस प्रश्न पर हमेशा हाथ उठा लिए जाते हैं। वही बात जीवनावश्यक वस्तुओं, उसी तरह दाल, खाद्य तेल, फल, सब्जियों इत्यादि की दर वृद्धि में भी है। इस दर वृद्धि के लिए वे कभी कम उत्पादन पर उंगली उठाते हैं तो कभी प्राकृतिक परिस्थितियों के नाम पर उंगलियां चटकाते हैं। फिर आपकी जिम्मेदारी और काम क्या है? महंगाई का ठीकरा आप कभी इस पर तो कभी उस पर फोड़नेवाले होंगे तो सरकार के रूप में जनता को आपका क्या लाभ? अब टमाटर १५० रुपए के पार पहुंच गया है फिर भी इसका ठीकरा मानसून पर फोड़ रहे हो। प्याज को लेकर भी सालों-साल से यही होता आया है। कभी प्याज की कीमतें इतनी गिर जाती हैं कि किसान उसे सड़क पर फेंकने को मजबूर हो जाता है। तो कभी वो बेहद महंगा हो जाता है, लेकिन न लाभ प्याज उत्पादक को मिलता है, न आम जनता को। वह मिलता है तो दलालों और व्यापारियों को। फिर वो महंगा प्याज राजनीतिज्ञों की आंखों में पानी लाता है, ऐसा कहा जाता है। परंतु प्याज की कीमतों में वृद्धि के कारण आम जनता की आंखों में आंसू न आ सके, इसके लिए सत्ताधारी एहतियात नहीं बरतते हैं। मोदी राज में भी अलग क्या हो रहा है? ९ वर्षों के शासनकाल में निर्णयों का ढोल आप सर्वत्र पीटते हो, फिर इन ९ वर्षों के बाद भी ‘महंगाई डायन’ आम जनता की गर्दन से उतरने का नाम लेती क्यों नहीं दिख रही है?
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