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-11 कि.मी. का विहार कर हरिपर गांव में पधारे शांतिदूत
-श्रीमती चंचलबेन विहारधाम पूज्यचरणों से बना पावन
जोधपुर संभाग पारस शर्मा हरिपर, मोरबी (गुजरात)
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देते हुए संवाददाता पारस शर्मा को बताया कि जन-जन को सन्मार्ग दिखाते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी गुजरात की धरा पर निरंतर गतिमान हैं। ज्योतिचरण की चरणरज से कभी गांवों की पगडंडियां पावन बन रही हैं तो कभी नगरों व बड़े कस्बों से होकर गुजरने वाले राजमार्ग। इसी प्रकार गांव, नगर, कस्बा व शहर में रहने वाली जनता भी आचार्यश्री की अमृतवाणी का श्रवण कर अपने जीवन को धन्य बना रही है। गुजरात के मोरबी जिले में गतिमान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातः की मंगल बेला में अपने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थान किया। उत्तर भारत में चलने वाली शीतलहर का कुछ प्रभाव सुबह के समय में भारत के पश्चिम भाग में अवस्थित इस हिस्से में भी महसूस किया जा सकता है, किन्तु दिन चढने के बाद सूर्य किरणों से वह प्रभाव मानों समाप्त-सा हो जा रहा है। इस क्षेत्र में स्थापित पवन चक्कियां वायु ऊर्जा के संचयन मानों प्रतीक बनी हुई हैं। कहीं पक्के तो कहीं कच्चे, कहीं ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग हरिपर गांव में स्थित श्रीमती चंचलबेन विहारधाम परिसर में पधारे। संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत-अभिनंदन किया।
तीर्थ परिसर में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं एवं बच्चों को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा जैन वाङ्मय में अठारह पाप बताए गए हैं। इन 18 पापों में तीसरा पाप है अदत्तादान अर्थात् चोरी। जो बिना किसी के मर्जी के ले लिया जाए, उसे चोरी कहा जाता है। चोरी नहीं करने का संकल्प कर लेना भी बहुत अच्छी बात होती है। कहा गया है कि जिसने संकल्प कर लिया कि चोरी नहीं करूंगा, ऐसे ईमानदार व्यक्ति को सिद्ध अपने यहां बुलाने को सोचते हैं, समृद्धि उसका वरण करती है। समृद्धि भी उसका वरण करती है, सुगति उसको चाहती है, दुर्गति उसे देख भी नहीं पाती। ईमानदारी का एक आयाम है चोरी नहीं करना, दूसरा आयाम है झूठ नहीं बोलना और तीसरा आयाम छल-कपट नहीं करना। चोरी, झूठ और कपट जिसमें नहीं होता तो ऐसा मानना चाहिए कि उस व्यक्ति में पूर्णतया ईमानदारी आ गयी।
दूसरे का हक मार लेना, दूसरे की चीजों को चुरा लेना पाप का कार्य है। आदमी को दूसरे के धन को धूल के समान समझे। आदमी को जहां तक संभव हो सके चोरी से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु के सर्व अदत्तादान का त्याग होता है। साधु को ध्यान रखना ही चाहिए आम आदमी को इस बात का ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए किसी दूसरे की वस्तु आदि को उठाने या चुराने का प्रयास अथवा विचार भी न आए। आदमी को जहां तक संभव हो शुद्ध साधुओं आदि अभावग्रस्त को दान देने का प्रयास करना चाहिए। चोरी नहीं करने का संस्कार आदमी में रहे तो उनका जीवन कितना निर्मल हो सकता है।
छोटे-छोटे बच्चों में भी अच्छे-अच्छे संस्कार आते रहें। स्कूल से अनेक विषयों का ज्ञान मिल सकता है तो साथ में ईमानदारी, नैतिकता व प्रमाणिकता के अच्छे संस्कार भी देने का प्रयास करना चाहिए। सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्पों का विकास बच्चों में होता रहे। आचार्यश्री ने समुपस्थित बच्चों से प्रश्न आदि कर उनमें अच्छे संस्कारों का वपन करने हेतु विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री से आशीर्वाद लेकर बच्चे अत्यंत हर्षित नजर आ रहे थे जोधपुर संभाग पारस शर्मा.9351448065
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