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पाली में रविवार को जैन समाज के सभी संप्रदाय के पर्युषण शुरू हुए। शहर के तेरापंथ भवन, हाथी घोड़ा मंदिर, रूई कटला स्थानक सहित अन्य स्थानको में जैन संतों के सानिध्य में जैन समाज के लोग धर्म, ध्यान, प्रभु की आराधना में जुटे हैं।
पर्युषण संयम की साधना का पर्व तेरापंथ धर्म संघ आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनि सुमति कुमार के सानिध्य में पर्युषण पर्व का पहले दिन रविवार को खाद्य संयम दिवस मनाया गय। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने गीतिका गाकर किया।
मुनि आगम कुमार ने गीत का संगान किया। उन्होंने कहा- जैन धर्म मे आत्मा को दो भाग हैं- बंध और मोक्ष। लोभ के साथ क्रोध भी आ जाता है और जहां क्रोध होता है वहां लोभ भी आ जाता है। क्रोध अहंकार को पैदा करता है फिर वह पवित्रता नहीं रहे सकते। माया भी लोभ के कारण ही उत्पन्न होती है, दूर करने का सबसे बड़ा साधन है संतोष।
मुनि देवार्य कुमार ने कहा- जैन का मतलब जिन है। जिन के देव वह जैन कहलाते हैं, हमारे देव है जिनेश्वर भगवान इसलिए हम जैन कहलाते हैं। जिनेश्वर भगवान के पर्यायवाची शब्द है। जिनेश्वर का पर्यायवाची शब्द है तीर्थंकर। तीर्थंकर ने ही धर्म की शुरुआत और तीर्थ की स्थापना की है। उसे समय जो समस्या आ रही थी सभी समस्या का समाधान दिया।
मुनि सुमति कुमार ने कहा- जो व्यक्ति सावन, भाद्रपद में नहीं आते वह पर्युषण पर्व में आते हैं और अपनी उपस्थिति देते हैं। यह जागने का समय है, शुद्ध साधना करने का समय है, आलौकिक शक्ति पैदा करने वाला यह पर्व है। आध्यात्मिक जगत का पर्व है। इन 8 दिनों में अपनी कषायों को शांत रखने का पर्व है। यह त्याग की चेतना को बढ़ाने का पर्व है। विशेषकर संयम की साधना का पर्व है।
इन आठ दिनों में त्याग, तपस्या जब तक स्वाध्याय ज्ञान आदि के द्वारा साधना की जाती है। आज का विषय खाद्य संयम दिवस है। जितने भी प्राणी है सभी शरीर धारी है शरीर धारी प्राणी को पांच संज्ञा मिलती है आहार संज्ञा, मैथुन संज्ञा, भय संज्ञा और परिग्रह संज्ञा।
शरीर को पोषण देने के लिए भोजन करना आवश्यक है। कुछ स्वाद के लिए कहते हैं कुछ स्वास्थ्य के लिए और कुछ साधना के लिए कहते हैं। आज हम देखते हैं खाने पर यदि नियंत्रण नहीं रखते हैं तो कितनी बड़ी-बड़ी बीमारी से हम ग्रस्त हो जाते हैं। इसलिए खाने का संयम बहुत जरूरी है।
भोजन कब , क्यों, कैसे और किस तरह से करना चाहिए इस पर चिंतन करना चाहिए। आचार्य तुलसी ने जैन संस्कार विधि बताई है। अनासक्ति भाव से हमें भोजन करना चाहिए, भगवती सूत्र में भोजन करते समय मौन रहना चाहिए, जल्दी-जल्दी भोजन नहीं करना चाहिए, शांति के साथ भोजन करना चाहिए, पेट को थोड़ा खाली रखना चाहिए।
भोजन करने के बाद आधा घंटा व्रजासन में बैठना चाहिए। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा आयोजित सीपीएस कार्यशाला के बारे में जानकारी दी।
पाली के आचार्य श्री रघुनाथ स्मृति जैन भवन में साध्वी मंजुल ज्योति ने कहा- अष्ट दिवसीय पर्युषण पर्व ज्ञान, दर्शन ,चरित्र, तप रूप में मोक्ष मार्ग पर चलना, मन की वृति को शांत करके आत्मा की प्रवृत्ति में संलग्न होना, इस पर्व के द्वारा अध्यात्म उन्नति की चर्चा की जाती है और आत्म विकास हेतु विविध प्रकार की क्रियाएं की जाती है।
राग द्वेष रूपी आत्मा पर जो मैल लगा हुआ है, उन्हें स्वच्छ किया जाता है। पर्युषण के दिनों में धार्मिक आराधना की प्रेरणा अनेक प्रकार कर्तव्य बोध द्वारा दी गई है
प्राचीन ग्रंथो में चार कर्तव्यों का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है पहला पौषध व्रत दूसरा ब्रह्मचर्य तीसरा आरंभ समारंभ का त्याग तथा चौथा विशेष तप पोषध का अर्थ उपवास करके धर्म ध्यान पूर्वक निवृत्ति में जीवन बिताना, यह छोटा साधु जीवन है। पोषध वास्तव में आत्मा का विश्राम केंद्र है।
इसमें घर परिवार समाज और संसार की चिंताओं से मुक्त होकर मन में प्रसन्नता आत्मा में हल्का पन और राग द्वेष की उपशांति का अनुभव किया जा सकता है ।
साध्वी वसुधा ने कहा- एक समय था जब माता-पिता या दादा-दादी बच्चों को अपने पास बैठाकर उन्हें धार्मिक एवं महापुरुषों के जीवन की बातें और कहानी सुना कर सुसंस्कारों
का बीजारोपण करते थे। यदि बच्चों के जीवन में संस्कार होंगे तो हमारा परिवार, समाज ,नगर एवं राष्ट्र का नाम रोशन होगा।
नई पीढ़ी को संस्कार देना निहायत जरूरी है। यदि संस्कार की जड़ें मजबूत होंगी तो आधुनिकता की आंधी नई पीढ़ी के इस वटवृक्ष को कभी भी धराशायी नहीं कर सकेगी।
यह काम मूल रूप से मां को करना होगा, क्योंकि मां अर्थात नारी अपने परिवार को सुचारु रूप से चलने के लिए लक्ष्मी का रूप धारण करें। संघ मंत्री पदमचंद ललवाणी, सह मंत्री संपत तातेड ने बताया कि महासती मंडल का आठों ही दिन नये धार्मिक विषयों पर प्रवचन होगा।
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