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सीनियर ऐडवोकेट अनिल सिंह के मुताबिक, अक्सर यह देखा गया है कि आपराधिक मामलों में आरोपी बेल हासिल करने के बाद मुकदमों की सुनवाई में देरी करते हैं। विलंब से अपराध से जुड़ा आक्रोश कम होता जाता है। फिर अलग-अलग हथकंडों से आरोपी अनुचित लाभ लेते हैं। चूंकि अब मुकदमे की सुनवाई पूरी करने को लेकर समय-सीमा तय कर दी गई है। इसका निश्चित तौर पर सकारात्मक असर पड़ेगा। कई बार लोगों को झूठे केस में फंसा दिया जाता है, ऐसे केस भी लंबे समय तक चलते रहते हैं, जिससे पीड़ित को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा के प्रसार और तेजी से बदले सामाजिक परिवेश के कारण अब कानूनी तरीके से विवादों के निपटारे का चलन बढ़ा है। इस लिहाज से भी केस के निपटारे के लिए तय की गई समय सीमा लोगों के लिए बड़ी राहत साबित होगी। तेजी से न्याय देने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जरूरी है कि अदालतों को पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराया जाए। जुडिसरी के बजट में बढ़ोतरी की जाए। पर्याप्त जजों की नियुक्ति की जाए, जिससे केसों का बैकलॉग खत्म किया जा सके। न्याय का टाइम फ्रेम मुख्य रूप से न्याय होना नहीं, बल्कि होते हुए भी नजर आना चाहिए' की अवधारणा को साकार करने में काफी कारगर साबित होगा।
ऐडवोकेट नुशरत शाह का कहना है कि नए कानून में मुकदमे के निपटारे की समय सीमा तय करने से न्यायिक कार्यवाही का अनुशासन मजबूत होगा। यह बेवजह सुनवाई टालने की मंशा रखने वालों के लिए हिदायत देता है। यानी सुनवाई टालने के लिए वकीलों को वास्तविक कारणों का खुलासा करना होगा। नए कानून में जिस तरह से तकनीक के साथ तालमेल बिठाया गया है। वह बेहद सराहनीय है। आने वाले समय में यह न्याय व्यवस्था में व्यापक बदलाव का आधार होगा। शुरुआत में छोटे-छोटे केसों को निर्धारित समय में निपटाना आसान होगा। जहां तक बात ट्रायल की है, तो इसकी सुनवाई बहुत से बातों पर निर्भर होती है, लेकिन हमें उम्मीद है कि जज ट्रायल को भी निर्धारित समय में पूरा करेंगे।
एक साल पुराने केस-
12,26,650
एक से तीन साल पुराने केस-
9,27,703
तीन से पांच साल पुराने केस
-6,28,261
पांच से दस साल पुराने केस -
6,52,641
दस से बीस साल पुराने केस -
2,32,886
20 से तीस साल पुराने केस - 53,020
महाराष्ट्र में कुल पेंडिंग क्रिमिनल केसों की संख्या
37,45,955
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