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मुंबई, आजकल शादियों का टूटना काफी कॉमन सी बात हो गई है। हालांकि एक नई स्टडी में पता चला है कि शादी का टूटना यानी तलाक समाज की नाराजगी से ज्यादा खतरनाक है। इससे हेल्थ को कई गंभीर नुकसान हो सकते हैं। स्टडी के मुताबिक, तलाक के बाद जब इंसान अकेला होता है, तब उसे डिमेंशिया का खतरा ज्यादा रहता है। शादी आपको इस गंभीर बीमारी के खतरे से बचाती है। नॉर्वेजियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ की तरफ से किए गए इस स्टडी में ४४ से ६८ साल की उम्र के लोगों की वैवाहिक स्थिति का विश्लेषण किया गया। इस स्टडी में पाया गया कि किसी इंसान की वैवाहिक स्थिति ७० साल की उम्र के बाद डिमेंशिया के इलाज को प्रभावित करता है। डिमेंशिया का खतरा तलाकशुदा और सिंगल लोगों में ज्यादा पाया गया। स्टडी टीम के एक मेंबर वेजर्ड स्किरबेक ने बताया कि डिमेंशिया और शादी में संबंध है। शादी लाइफ में होने वाले तनाव को कम करने में मदद करती है। स्किर्बेक ने बताया कि शादीशुदा होने का मतलब है कि हम तनाव का सामना अकेले नहीं करते हैं। हमारे पास कोई ऐसा है, जिससे हम सबकुछ शेयर कर सकते हैं। बुरे दौर में यह आपकी मदद करता है। आपका साथी आपके तनाव को कम कर सकता है। यह एक बफर देता है, जिसके बिना हम अपने दिमाग को कोर्टिसोल नाम के एक भड़काऊ तनाव हार्मोन के लिए खुला छोड़ देते हैं, जो समय के साथ दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है।
उन्होंने बताया कि शादी आपको मेंटली प्रॉब्लम्स से भी बचाता है। आपका पार्टनर आपको हेल्दी पैटर्न विकसित करने में सहायता करता है। स्किर्बेक के मुताबिक, अगर कोई डॉक्टर आपको बताता है कि आपका वजन ज्यादा है तो आप उसे बदल सकते हैं लेकिन अपना जीवनसाथी बदलना आसान नहीं होता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, शादी में मेल पार्टनर को ज्यादा फायदा पहुंचता है। स्टडी में यह भी बताया गया है कि लंबे समय तक रोमांटिक रहना आपको एक पार्टनर के तौर पर सुरक्षा प्रदान करता है। २०१८ की एक मेटा-स्टडी जो १५ अलग-अलग स्टडीज पर बेस्ड थी, जिसमें पता चला कि शादीशुदा होने से डिमेंशिया का खतरा कम हो जाता है, वहीं २०२० में हुए एक और स्टडी में पता चला कि तलाकशुदा, सिंगल लोगों में डिमेंशिया का खतरा ज्यादा रहता है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में यह जोखिम ज्यादा पाया गया।
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