Breaking News
मुंबई, ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ से होने वाली घटनाएं ब़़ढ़ेंगी और मौसम का मिजाज पूरी तरह बदला हुआ दिखेगा। आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन’ पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि के परिणामस्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखंडों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जंतु-जगत पर प्रभावों के रूप में सामने आ सकते हैं और इसकी शुरुआत हो चुकी है। महानगरों के परिवेश में समझें तो स्थिति बेहद नाजुक है, चूंकि यहां जनसंख्या का बढ़ना लगातार जारी है। दूर-दराज से महानगरों में हर कोई रोजी-रोटी के लिए आता है और फिर उसका यहां रहना मजबूरी बन जाता है, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। दिल्ली के एक वैज्ञानिक ने एक बेहतरीन उदाहरण देकर समझाया कि आज से मात्र दस से पंद्रह वर्ष पूर्व सौ गज के मकान में एक परिवार रहता था और अब फ्लोर रजिस्ट्री सिस्टम आने के बाद उस ही बिल्डिंग में ५०-५० गज के आठ फ्लैट बन गए और उसके बाद भी बिल्डर उस बिल्डिंग से अंत तक पैसा वसूलने के चक्कर में नीचे पार्किंग में बच्चा फ्लैट के साथ एक दुकान भी निकाल देते हैं। पहला तो जहां एक परिवार रहता था, वहां नौ परिवार रहने लगे और साथ में एक दुकान भी और आजकल के दौर में हर कोई एसी लगाता है, जिसके चलते उसी ही बिल्डिंग में दस एसी लग गए तो आप समझिए कि उस प्रॉपर्टी से कितनी आग निकलती होगी। इसी आधार पर आगे समझिए कि पूरी गली, मोहल्ला और फिर पूरा शहर किस तरह आग में जलता है। वहीं इसके विपरीत हम पिछले कुछ वर्षों में प्रकृति का जितना दोहन कर चुके हैं, उससे मानव पर प्रहार की तस्वीर स्पष्ट हो गई। हालांकि, कुछ लोग इसे अभी शुरुआत कह रहे हैं और यदि उनकी बात मान भी लें तो मध्य या अंत कितना भयावह होगा शायद यह बताने की जरूरत नहीं है। यदि संपूर्ण पटल पर बात करें तो भारत में भी ग्लोबल वार्मिंग एक प्रचलित बन गया लेकिन भाग-दौड़ में लगे रहने वाले लोगों के लिए भी इसके कु-प्रभाव को समझ ही नहीं पा रहे। हम लोग आज जीवन के उस चक्रव्यूह में फंस चुके हैं, जिससे निकलना बेहद असंभव है। रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरतें पूरी करते हुए हम उस कहावत के तर्ज पर आ गए कि `गजब की प्यास लगी थी और नदी में जहर था, उसका पानी पीते तो भी मर जाते और न पीते तो भी मर जाते’। हम अपने स्वास्थ्य को लेकर कब अप्राकृतिक साधनों की गिरफ्त में आ गए पता भी नहीं चला। भारत के अलावा बाकी दुनिया इसके विषय में बड़े स्तर पर चर्चा करती है। देखा जाता है कि इस मामले को लेकर टीवी चैनलों पर डिबेट और अखबारों में खबर रहती है और जिस तरह विज्ञान की दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियां की जा रही हैं, उससे तो डर लगता है चूंकि आगामी समय में पृथ्वी, जल या नष्ट हो जाएगी। इसको २१वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है।
रिपोर्टर