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मुंबई, इंटरनेट के इस युग में बड़े और बूढ़ों के साथ ही बच्चों को भी मोबाइल की बुरी तरह से लत लग गई है। हालांकि, बच्चों में मोबाइल की लत के लिए कहीं न कहीं उनके माता-पिता ही जिम्मेदार हैं। बच्चे के रोने या खाना खाने के दौरान उन्हें बहलाने के लिए, इसके दुष्परिणाम की परवाह किए बिना ही माता-पिता बच्चे के हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं। रिसर्च में खुलासा हुआ है कि मोबाइल की लत बच्चों के दिमाग पर गलत असर डालता है। कई रिसर्च में सामने आया है कि कम उम्र में बच्चों को फोन देने से उनका मानसिक विकास यानी मेंटल डेवलेपमेंट प्रभावित होता है। इससे बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा बढ़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि स्मार्टफोन, टीवी या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर ज्यादा समय बिताने से बच्चों में कई लक्षण दिखाई देते हैं। वर्चुअल ऑटिज्म का ज्यादा असर अक्सर चार से पांच साल के बच्चों में देखने को मिलता है। मोबाइल फोन, टीवी और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत की वजह से ऐसा होता है। स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में बोलने और समाज में दूसरों से बातचीत करने में दिक्कत होने लगती है। चिकित्सकों के मुताबिक, इस स्थिति को ही वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है। बच्चों को इससे बचाने की जिम्मेदारी अभिभावकों की है।
बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षणों में हर थोड़ी देर में चिड़चिड़ाना, रिस्पॉन्स न करना, दो साल के बाद भी बोल न पाना, पैâमिली मेंबर्स को न पहचानना, नाम पुकारने पर अनसुना करना, किसी से नजर न मिलाना, एक ही एक्टिविटी को दोहराना आदि का समावेश है।
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