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मुंबई: वैसे तो मराठा आरक्षण की लड़ाई लगभग 4 दशक पुरानी है, लेकिन पिछले 10 साल में मराठा आरक्षण 6 पर्सेंट घट गया है। यह तीसरी बार है जब महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने मिलकर एकमत से मराठा समाज को आरक्षण देने के अध्यादेश और विधेयक पारित किए हैं। सबसे पहले सबसे पहले 2014 में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार ने पृथ्वीराज चव्हाण के मुख्यमंत्रित्व काल में मराठों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16% आरक्षण देने का अध्यादेश लाया था। इसके 4 साल बाद बीजेपी और शिवसेना की सरकार में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्रित्व काल में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का विधायक दोनों सदनों में पारित हुआ। मामला हाई कोर्ट में गया, जहां अदालत ने मराठों को 16 प्रतिशत से घटाकर शिक्षा में 12% और सरकारी नौकरियों में 13% आरक्षण बहाल किया। बाद में इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां मराठा आरक्षण रद्द कर दिया गया।
अब तीसरी बार बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी तीनों पार्टियों की मिलीजुली मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने मराठों को आरक्षण देने का विधायक पारित किया है, लेकिन इस बार मराठा आरक्षण का कोटा 16% से घटकर 10% रह गया है।
इस बारे में राज्य के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें मराठा समाज के सामाजिक रूप से पिछड़े होने के जो पैमाने निर्धारित किए गए हैं, उसी आधार पर 10% की सीमा सुनिश्चित की गई है। हालांकि, इस विधेयक को भी अदालत में चुनौती दिए जाने की घोषणा मराठा आरक्षण विरोधी वर्ग कर रहा है। हालांकि, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले रद्द किए गए मराठा आरक्षण के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव अर्थात पुनर्निरीक्षण याचिका दाखिल कर रखी है। सरकार का दावा है कि उसका यह विधेयक अदालत में जरूर टिकेगा।
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