Breaking News
मुंबई, मानसिक स्वास्थ्य इस समय बड़ी समस्या बनता जा रहा है। सबसे बड़ी बात है कि मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वह तनाव अथवा अवसाद की गिरफ्त में आ चुका है। अब स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि ये मानसिक रोग लोगों की जिंदगियां निगलने लगे हैं। इसके शिकार हुए लोगों के मन में ये धीरे-धीरे आत्महत्या करने जैसे आत्मघाती कदम का खयाल पैदा कर रहा है। एक सर्वे के मुताबिक हिंदुस्थान में हर १२ में से एक व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार है और वह आत्महत्या करने जैसे कदम उठाकर अपने जीवन को समाप्त कर रहा है। इस फेहरिस्त में महाराष्ट्र राज्य सबसे ऊपर के पायदान पर है। देशभर में दिमागी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए चलाई जा रही राष्ट्रीय हेल्पलाइन पर एक तिहाई कॉलर्स ने बताया है कि वे चिंता, अवसाद और आत्मघाती विचारों से जूझ रहे हैं। नवंबर २०२२ से जनवरी २०२३ इन तीन महीनों के बीच इस तरह के मामले लगभग ४० प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। दूसरी ओर एनसीआरबी के आंकड़े भी बताते हैं कि २०२० के मुकाबले २०२१ में आत्महत्याओं का प्रतिशत ७.२ फीसदी बढ़ा है।
देशभर में नि:शुल्क मानसिक स्वास्थ्य परामर्श प्रदाता, साइरस एंड प्रिया वंद्रेवाला फाउंडेशन का कहना है कि पिछले १८ महीनों यानी अगस्त २०२१ से जनवरी २०२३ में उनसे संपर्क करने और सलाह लेनेवाले लोगों में कम-से-कम एक तिहाई लोगों ने बताया कि वे चिंता, अवसाद और आत्महत्या के विचारों से जूझ रहे हैं। इस संकट से निपटने के लिए उन्होंने पहले से ही मनोवैज्ञानिक मदद मांगी है। इस बारे में प्रिया हीरानंदानी वंद्रेवाला का कहना है कि साल २०२२ में हिंदुस्थान में हत्याओं और कोरोना वायरस से ज्यादा जानें आत्महत्या ने ली हैं। भले ही आज देश का हर मेडिकल छात्र मनोचिकित्सक बन गया हो लेकिन हमारे पास मानसिक स्वास्थ्य संकट को हल करने के लिए पर्याप्त लोग नहीं हैं।
साल २०२१ में हिंदुस्थान में प्रति एक लाख आबादी पर १२ आत्महत्याएं दर्ज की गर्इं। सबसे ज्यादा महाराष्ट्र फिर तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में आत्महत्याओं की घटनाएं दर्ज की गर्इं, जो इस बात के संकेत हैं कि इन राज्यों के लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संकट चिंता का एक बड़ा कारण है और इसके लिए कई बातें जिम्मेदार हो सकती हैं।
युवाओं में व्हॉट्सऐप का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। तीन महीनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि युवा अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर व्हॉट्सऐप का उपयोग कर रहे हैं। १८ वर्ष से कम आयु के ६५ फीसदी, १८-३५ आयु के ५० फीसदी, ३५-६० आयु के २८.३ फीसदी और ६० वर्ष से अधिक आयु के ८ फीसदी लोगों ने इसके लिए व्हॉट्सऐप का उपयोग किया है।
व्हॉट्सऐप ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए ऐसी महिलाओं, लड़कियों, और युवाओं के लिए संचार का द्वार खोला है, जो अपने परिवार या साथियों को बिना बताए इन समस्याओं पर चर्चा करना चाहते हैं। उन्हें यहां गोपनीयता और निजता मिलती है। लगभग ५३ फीसदी महिलाएं व्हॉट्सऐप का उपयोग करके हेल्पलाइन से संपर्क करना पसंद करती हैं, जबकि ४२ फीसदी पुरुष व्हॉट्सऐप का उपयोग करना पसंद करते हैं।
फाउंडेशन के आंकड़ों से पता चला है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर परामर्श लेनेवाले ८१ फीसदी लोगों में महाराष्ट्र के १७.३ फीसदी, उत्तर प्रदेश के ९.५ फीसदी, कर्नाटक के ८.३ फीसदी, दिल्ली के ८ फीसदी, तमिलनाडु के ६.२ फीसदी, गुजरात ते ५.८ फीसदी, पश्चिम बंगाल के ५.४ फीसदी, केरल के ५,३ फीसदी, तेलंगाना के ४ फीसदी, मध्य प्रदेश के ३.८ फीसदी, राजस्थान के ३.६ फीसदी और हरियाणा ३.६ के फीसदी लोग शामिल हैं।
रिपोर्टर