Breaking News
नई दिल्ली, देश में प्रति १० लाख की आबादी पर कम से कम ५० जज होने चाहिए, पर सिर्फ १५ ही हैं। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-२०२२ में ये आंकड़े सामने आए हैं। जो चौंकाने वाले हैं। इस मामले में १८ बड़े राज्यों में उत्तराखंड की स्थिति सबसे अच्छी और आंध्र की सबसे खराब है। प्रति दस लाख आबादी पर एमपी में १८ और राजस्थान में १६ जज हैं। देश की हाईकोर्ट में जजों के ३० फीसदी पद खाली हैं। इनमें हर १० में से ५ केस पांच साल से ज्यादा समय से लंबित हैं। हाईकोर्ट जजों में १३ फीसदी ही महिलाएं है। देश में १७,६५,७६० लोगों पर हाईकोर्ट का एक जज है।
देश की ५४ फीसदी जेलें ठसाठस भरी हैं। कई जेलों में क्षमता से १८५ फीसदी तक ज्यादा वैâदी हैं। यूपी और एमपी की स्थिति सबसे खराब है। यूपी की सर्वाधिक ५७ और मपी की ४० जेलों में १५० फीसदी से ज्यादा वैâदी हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ७७ फीसदी कैदियों का ट्रायल ही पूरा नहीं हो पाया है। इन विचाराधीन कैदियों में से करीब २१फीसदी को जेल में बंद हुए १-३ साल तक बीत चुके हैं। राजस्थान में ऐसे सर्वाधिक २८ फीसदी हैं। इसके बावजूद देश की जेलों में २८ फीसदी अफसरों के पद खाली पड़े हैं। देश में ५,५४,००० से अधिक जेल कैदियों के लिए केवल ६५८ चिकित्सा अधिकारी हैं। यानी औसतन ८४२ कैदियों के लिए एक डॉक्टर है। जेलों में चिकित्सा अधिकारियों के ४८ फीसदी पद खाली हैं।
देश की जेलों में अडंरट्रायल कैदियों में भी ४३ फीसदी दसवीं से कम पढ़े हैं और २५फीसदी निरक्षर हैं। ७.७ फीसदी ग्रेजुएट और १.८ फीसदी पोस्टग्रेजुएट हैं। करीब १८ लाख कैदियों में से ८९,७६१ यानी ५ फीसदी ने ही जेल में पढ़ाई की। जेलों पर प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय खर्च रुपए ४३ है, प्रति कैदी औसत खर्च ४३,०६२ रुपए से घटकर ३८,०२८ रुपए हो गया है। आंध्र प्रदेश में एक कैदी पर सबसे अधिक वार्षिक खर्च होता है, जो २,११,१५७ रुपए है।
रिपोर्टर